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Best 140+ Kabir Ke Dohe in Hindi | संत कविर दास जी के दोहे

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Kabir Ke Dohe in Hindi | संत कविर दास जी के दोहे
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Kabir Ke Dohe: Sant Kabir Das ji made a huge contribution to the world of Hindi literature. The couplets written by him are famous all over the country. Today we have brought a small collection of some very popular couplets of Kabir Das Ji, from which you will get amazing knowledge related to life. You will find a very deep meaning in each couplet.

आज हम लेकर आए हैं 100 कबीर दास जी के कुछ ऐसे बेहद ही लोकप्रिय दोहों का एक छोटा सा संग्रह जिनसे आपको जीवन से जुड़े अद्भुत ज्ञान प्राप्त होंगे।

Best Kabir Ke Dohe

कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर ॥

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई.
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई.

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट |
पाछे फिर पछताओगे, प्राण जाहि जब छूट ||

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गुरु को सर पर राखिये चलिये आज्ञा माहि।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोक भय नाहीं ॥

कबीर कुआ एक हे,पानी भरे अनेक।
बर्तन ही में भेद है पानी सब में एक ।।

“माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे |
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे।।”

शाखें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आयेंगे
ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी आयेंगे.!

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।

बैद मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम आधार॥

कबीरा तेरे जगत में, उल्टी देखी रीत ।
पापी मिलकर राज करें, साधु मांगे भीख ।

देख कबीरा दंग रह गया मिला न कोई मीत,
मंदिर मस्जिद के चक्कर में खत्म हो गई प्रीत।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

चींटी चावल ले चली, बीच में मिल गई दाल।
कहत कबीर दो ना मिले, एक ले दूजी डाल ॥

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।

मन मैला तन ऊजला, बगुला कपटी अंग
तास तो कौआ भला, तन मन एकही रंग ॥

कबीर वह तो एक है, पर्दा दिया वेश ।
धरम करम सब दूर कर, सब ही माहि अलेख

चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोए
दुई पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।

जब तूं आया जगत में, लोग हंसे तू रोए
ऐसी करनी न करी पाछे हंसे सब कोए।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब।

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धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।

सुख के संगी स्वार्थी, दुख में रहते दूर.
कहे कबीर परमारथी, दुख-सुख सदा हजूर.

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी ऑखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

Famous Kabir Ke Dohe

माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख ।
माँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख।

झूठे को झूठा मिले, दूंणा बधे सनेह
झूठे को साँचा मिले तब ही टूटे नेह |

गिरही सेवै साधु को साधु सुमिरै राम
या धोखा कछु नाहि, सारे दीड का काम ।।

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दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय.!

कबीर हरि भक्ति बिन, धिक जीवन संसार.
धुवन कासा धुरहरा, बिनसत लगे ना बार.

भक्त मरे क्या रोइये, जो अपने घर जाय
रोइये साकट बपुरे, हाटों हाट बिकाय ॥

कबीर के दोहे

कहै कबीर गुरु प्रेम बस, क्या नियरै क्या दूर।
जाका चित जासो बसै, सो तिहि सदा हजूर ।

जैसा घटा तैसा मता, घट घट और सुभाव
जा घठ हार ना जीत है, ता घट ब्रहम् समाय ॥

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।।

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हरि कृपा तब जानिये, दे मानव अवतार।
गुरु कृपा तब जानिये, छुरावे संसार ॥

जो मानुष गृहि धर्मयुत, राखै शील विचार ।
गुरुमुख बानी साधु संग, मन बच सेवा सार ॥

भेष देख मत भूलिए, बूझि लीजिये ज्ञान।
बिना कसौटी होत नाहिं, कंचन की पहिचान।।

Kabir Das Ke Dohe In Hindi

जो कोई करै सो स्वार्थी, अरस परस गुन देत.
बिन किये करै सो सूरमा, परमारथ के हेत.

साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहि ।
धन का भूखा जो फिरऐ सो तो साधू नाहि ।।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पाय
बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविंद दियो बताय ।

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बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय |
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय |

मन चलता तन भी चले, ताते मन को घेर ।
तन मन दोई बसि करै, राई होवे सुमेर ।

क्या भरोसे देह का, बिनस जाय क्षण माही
सांस सांस सुमिरन करो, और जतन कछु नाही ॥

Kabir das ki Vani

मैं मेरा घर जालिया, लिया पलीता हाथ ।
जो घर जारो आपना, चलो हमारे साथ ||

माषी गुड़ में गड़ी रही हैं, पंख रही लपटाय |
ताली पीटे सिर धुने, मीठे बोई माइ ॥

तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार ।
सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार |

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मुरदे को हरि देत है, कपडा लकड़ी आग।
जीवित नर चिन्ता करे, उनका बड़ा अभाग ॥

ज्ञान भक्ति वैराग्य सुख पीव ब्रह्म लौ धाये।
आतम अनुभव सेज सुख, तहन ना दूजा जाये ॥

रात गंवाई सोय के, दिन गंवाई खाय ।
हीरा जनम अनमोल था, कौड़ी बदले जाय ॥

Best Kabir Ke Dohe

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय.!

चिंता से चतुराई घटे, दुःख से घटे शरीर,
पाप से लक्ष्मी घटे, कह गए दास कबीर ।

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई.
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई.

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कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उड़ी जाइ ।
जी जैसी संगती कर, सी तैसा ही फल पाइ ।

कबीर दुनिया से दोस्ती, होये भक्ति मह भंग ।
का ऐकी राम सो, कै साधुन के संग ॥

अहिरन की चोरी करै, करे सुई का दान ।
उंचा चढी कर देखता, केतिक दूर विमान ॥

Sant Kabir Ke Dohe

मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख
मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख

भक्ति भक्ति सब कोई कहै, भक्ति ना जाने भेव ।
पूरन भक्ति जब मिलै, कृपा करे गुरुदेव ॥

साईं इतना दीजीए, जामे कुटुंब समाए
मै भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए।

मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत ।
मूये पीछे उठि लगा, ऐसा मेरा पूत ||

साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदै साँच है ताके हृदय आप ॥

kabir ke dohe Text

निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

जब तूं आया जगत में, लोग हंसे तू रोए
ऐसी करनी न करी पाछे हंसे सब कोए ।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल हो ।

जाति पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।

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दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय ।

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।

जहाँ न जाको गुन है, तहाँ न ताको ठाँव ।
धोबी सके क्या करे, दीगम्बर के गाँव |

कस्तूरी कन्डल बसे मृग ढूढै बन माहि ।
त्ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नहि ।।

कबीर तहां न जाइये, जहां जो कुल को हेत
साधुपनो जाने नहीं, नाम बाप को लेत।

कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीड़ जो पर पीड़
न जानता, सो काफ़िर बे-पीर।

Nida Fazli Poetry

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